प्रीमेच्योर बेबी को 5 साल तक होती है एक्स्ट्रा केयर की जरूरत, इस तरह रखें उनका ख्याल

सेहतराग टीम

नवजात बच्चे काफी नाजुक होते हैं। उनके लिए शुरूआत के दिन काफी चुनौतियों वाले होते हैं। क्योंकि ज्यादातर मामलो में बच्चे छोटे और वजन में कम होते हैं। प्रीटर्म बच्चे शुरुआत में ज्यादातर बीमार रहते हैं इसलिए इन्हें एक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है। आइए अब हम आपको प्रीमेच्योर बेबी की केयर करने की टिप्स बताते हैं।

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इस तरह करें प्रीमेच्योर बेबी की देखभाल (Premature Baby Care in Hindi):

  • प्रिमेच्योर बेबी को मां का दूध पीने में दिक्कत हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि मां अपने दूध को निकालकर शिशु को बोतल से दूध पिला सकती हैं। कुछ मामलों में, डॉक्टर शिशु को फॉर्मूला दूध पिलाने की सलाह दे सकते हैं। 
  • प्रीमेच्योर बेबी के अंग काफी नाजुक और कमजोर होते हैं। कुछ मामलों में तो उनके अंग ठीक तरह से डेवलप भी नहीं होते हैं, ऐसे में उन्हें प्रॉपर डॉक्टर की देखभाल में रखना जरूरी होता है।
  • प्रीटर्म बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में अलग तरह से बढ़ते हैं। इसलिए इस ओर पूरा ध्यान रखें। आपका डॉक्टर आपके बच्चे के विकास का रिकॉर्ड रखने के लिए आपको एक अलग विकास चार्ट दे सकता है। अगर ऐसा होता है तो इसमें लापरवाही न बरतें
  • प्रीटर्म बेबी कई दिनों तक हॉस्पिटल में डॉक्टर की निरीक्षण में रहते हैं। घर आने के बाद भी ऐसे बच्चे की देखभाल काफी सावधानी और साफ-सफाई का ध्यान में रखते हुए ही करना चाहिए।
  • ऐसे बच्चों का इम्यून सिस्टम भी काफी कमजोर होता है जिसके चलते वह जल्दी बीमार पड़ जाते हैं। इसलिए उन्हें कुछ भी खिलाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। नहीं तो यह उनके सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है।
  • बच्चे के लिए बिस्तर एकदम आरामदायक होना चाहिए। प्रीटर्म बच्चे को कभी भी तकिए पर न लेटाएं। साथ ही उसे कभी पेट के बल भी न लेटने दें।

जानिए क्यों मनाया जाता है विश्व प्रीमेच्योर डे (World Premature Day)

वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे सबसे पहले 17 नवंबर 2011 को मनाया गया था। आपको बता दें कि हर साल लगभग 15 मिलियन बच्चे समय से पहले ही पैदा होते हैं। ऐसे में आज वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे पर हम आपको इस दिन के बारे में कुछ खास बताने जा रहे हैं आइए जानते हैं। प्रीमेच्योर पैदा हुए बच्चों को सामान्य बच्चों के मुकाबले ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जैसे अपरिपक्व फेफड़ों व मस्तिष्क की वजह से उसे सांस लेने में कठिनाई होती है। सांस लेने की प्रक्रिया में लंबे विराम को ऐपनिया कहते हैं, जो अपरिपक्व दिमाग के कारण होता है। प्रीमैच्योर बच्चे के रिफ्लैक्स चूसने और निगलने के लिए कमजोर होते हैं जिससे उसे अपना आहार प्राप्त करने में मुश्किल होती है।

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